रविवार, 8 दिसंबर 2013

बेसुरे राग / सुर मिलाओ बसपा के साथ आओ

चार राज्यों में सपा साफ, बसपा हुई हाफ

sp and bsp status after election result
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में कोई करिश्मा नहीं दिखा पाईं। पिछले चुनाव की तुलना में न केवल उनकी सीटें घटीं, वोट प्रतिशत भी कम हो गया।
हालांकि जिन चार राज्यों के चुनावी नतीजे रविवार को घोषित हुए हैं उनमें दो में कांग्रेस और दो में भाजपा की सरकार थी।
मुख्य मुकाबला भी इन्हीं के बीच था लेकिन तीसरा कोण बनने के लिए सपा और बसपा ने पूरी ताकत झोंक दी थी।
यूपी के इन दोनों बड़े दलों के स्टार प्रचारकों ने इन राज्यों में कई सभाओं को संबोधित किया। पर चुनाव परिणाम से उन्हें झटका लगा है। नतीजों के प्रारंभिक विश्लेषण के मुताबिक दोनों दलों को पिछली बार से कम वोट मिले हैं।
नहीं खुला खाता, पंक्चर हुई साइकिल 
चार राज्यों के नतीजे सपा की उम्मीदों के मुताबिक नहीं रहे। मध्य प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सपा का खाता भी नहीं खुल सका। पिछली बार सपा को मध्य प्रदेश और राजस्थान में एक-एक सीट मिली थी।
सपा ने भाजपा-कांग्रेस के तीसरे मोर्चे की ताकतों को मजबूत बनाने का आह्वान करते हुए चारों राज्यों में प्रत्याशी उतारे।
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव चुनाव प्रचार के लिए गए। सपा नेता लगातार दावा कर रहे थे कि भाजपा और कांग्रेस शासित राज्यों में जनता की निगाहें तीसरे विकल्प पर हैं।
पढ़ें-आखिरी नतीजे! कौन जीता... कौन हारा
तीसरे मोर्चे का सबसे बड़ा दल होने के नाते सपा से लोगों को बहुत उम्मीदें हैं। चुनाव परिणाम ने साबित कर दिया कि वोटरों ने सपा को विकल्प मानना तो दूर खाता खोलने तक के लिए तरसा दिया।
2008 के विधानसभा चुनाव में सपा ने मध्यप्रदेश में 187 सीटों पर चुनाव लड़कर एक सीट जीती थी। इस बार भी सपा ने सौ से ज्यादा प्रत्याशी उतारे। डेढ़ दर्जन उम्मीदवार गंभीर माने जा रहे थे लेकिन उनमें से कोई भी खाता नहीं खोल पाया।
राजस्थान में पिछली बार सपा ने 64 उम्मीदवारों को चुनाव लड़ाया था। उसे एक सीट मिली थी। इस बार कोई सीट नहीं मिल पाई।
दिल्ली और छत्तीसगढ़ में भी उसका कोई प्रत्याशी नहीं जीत सका। जिन राज्यों में चुनाव हुए हैं, उनमें दो भाजपा और दो कांग्रेस शासित थे लेकिन सपा को गैर कांग्रेस-गैर भाजपा का नारा उछालने का कोई लाभ नहीं मिला।
17 से आठ सीटों पर ठिठका हाथी
यूपी में सत्ता से बेदखल होने के बाद बसपा को चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी झटका लगा है।
लोकसभा चुनावों से पहले इन राज्यों में बेहतर प्रदर्शन कर कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने की पार्टी की रणनीति कामयाब नहीं हो सकी।
दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ के पिछले विधानसभा चुनावों में पार्टी को 17 सीटें मिली थीं। इस बार सीटों का आंकड़ा आठ पर सिमट गया।
बसपा ने 2008 के विधानसभा चुनावों में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली और राजस्थान में सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। दिल्ली व छत्तीसगढ़ में पार्टी को दो-दो, मध्य प्रदेश में सात, राजस्थान में छह सीटें मिली थीं।
बाद में बसपा के सभी विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए थे। राजस्थान में पार्टी को इस बार तीन सीटें ही मिलीं। मध्यप्रदेश में भी सीटें बढ़ने की जगह घटी हैं। बसपा यहां चार सीटों तक सिमट गई।
पार्टी को छत्तीसगढ़ में जरूर पिछली बार जितनी दो सीटें मिली हैं लेकिन दिल्ली में पार्टी पूरी तरह से साफ हो गई।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने इन राज्यों में प्रदर्शन के लिए जोरदार प्रचार अभियान चलाया था। लोकसभा चुनाव से पहले बसपा राज्यों में अपने प्रदर्शन से बड़ा संदेश देना चाहती थी।
मगर विधानसभा चुनाव के नतीजों ने पार्टी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। कांग्रेस विरोधी लहर में वह दिल्ली के साथ ही दूसरे राज्यों में अपनी ताकत बढ़ाने की जगह घटा बैठी।

'नतीजे कांग्रेस व भाजपा के लिए एक सीख'

akhilesh yadav statement after election result

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मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने चार राज्यों के चुनावी नतीजों को कांग्रेस के लिए सबक बताया है। उन्होंने कहा, चुनाव नतीजों में जो नई बातें निकलकर आई हैं, सपा भी उनका विश्लेषण करेगी।
बीबीडी बैडमिंटन एकेडमी में चुनावी नतीजों पर प्रतिक्रिया जताते हुए अखिलेश यादव ने कहा कि सपा अपने कार्यक्रमों, विकास योजनाओं के बारे में जनता को और ज्यादा जागरूक करेगी।
उन्होंने कहा, उत्तर प्रदेश बड़ा राज्य है इसलिए यहां चुनावी नतीजों के असर पर अभी से कुछ नहीं कह सकते। परिणामों से जो नई बातें निकलकर आई हैं, पार्टी उनकी समीक्षा करेगी।
सपा उन ताकतों का मुकाबला करने के लिए तैयार है जो चुनाव जीतकर आई हैं। उन्होंने भरोसा जताया कि प्रदेश की जनता ऐसी ताकतों का जवाब देने में उनका साथ देगी। उन्होंने नतीजों को कांग्रेस के लिए सबक देने वाला बताया। कहा कि कांग्रेस के लिए सोचने का वक्त है।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी के जोरदार प्रदर्शन को उन्होंने अच्छे लोकतांत्रिक चुनाव परिणाम की मिसाल बताया और कहा, ये कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए एक सीख है।

'सत्तामद में चूर कांग्रेस ने नहीं मानी हमारी सलाह'

rajendra chaudhary statement after election result
समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री राजेंद्र चौधरी ने कहा कि लोकतंत्र में जनादेश का सम्मान सभी को करना होता है लेकिन चार राज्यों के नतीजे चिंता और चिंतन का विषय हैं।
सांप्रदायिक ताकतों के उभार को देखते हुए लोकसभा चुनावों में तीसरे विकल्प की आवश्यकता है।
चौधरी ने कहा, जिन राज्यों में भाजपा को बढ़त मिली है, उनके पीछे कांग्रेस की कुनीतियां हैं। कांग्रेस ने केंद्र में अपने दो कार्यकालों में महंगाई और भ्रष्टाचार के रिकॉर्ड बनाए।
घोटालों ने देश की जनता को बहुत क्षुब्ध किया है। जिस तरह कांग्रेस ने जनविरोधी नीतियां थोपीं, उसकी प्रतिक्रिया में जनता ने कांग्रेस को नकारा है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी का उदय कांग्रेस और भाजपा के प्रति जनविरोध का परिणाम है।
उन्होंने कहा कि देश में अब तीसरे विकल्प की और ज्यादा जरूरत है। मुलायम सिंह यादव इस दिशा में प्रयासरत हैं। उन्हीं के कारण यूपी में सांप्रदायिक ताकत (भाजपा) नहीं पनप सकी है।
आगामी लोकसभा चुनावों में जनता भाजपा-कांग्रेस को भाव न देकर एक नए राजनीतिक विकल्प को सत्ता में बिठाने का काम करेगी।
सपा ने धर्मनिरपेक्षता की बढ़ावा देने के लिए केंद्र की कांग्रेस सरकार से लगातार कहा लेकिन सत्तामद में चूर कांग्रेस ने सलाह नहीं मानी। जनता ने कांग्रेस के खाद्य सुरक्षा बिल को चुनावी स्टंट माना।

(बेसुरे राग मत अलापो चौधरी, ये जनता है सब कुछ देख रही है, नेता जी के गुणगान करो जिससे आप कि कुर्सी सुरक्षित और पिछड़ों का नाश होता रहे, आश्चर्य है आप सरीखे लोग सरकार "माननीय मंत्री जी" हो और सोच वही, आप कांग्रेस/आप के प्रति वफादार हो या सपा के प्रति- सुर मिलाओ बसपा के साथ आओ )

आजम के विभाग में नियुक्ति पर 'बड़ा खेल'

questions raised over appointments in azam khan dept
उत्तर प्रदेश सरकार के कद्दावर कैबिनेट मंत्री मोहम्मद आजम खां के विभाग में भी नियुक्ति में खेल उजागर हुआ है।
प्रतिनियुक्ति पर आए डूडा के सहायक परियोजना अधिकारी को ईओ की कुर्सी सौंप दी गई है, जो कि शासनादेश का खुला उल्लंघन है।
इस पर कमिश्नर ने तो पत्र लिखकर कड़ा ऐतराज किया ही है। नगर विकास विभाग के संयुक्त सचिव ने भी आपत्ति जताई है। दरअसल नगर पालिका अमरोहा में अधिशासी अधिकारी (ईओ) का पद करीब दस माह से रिक्त चल रहा है।
मुज्जफरनगर दंगाः बलात्कार के मामलों में नहीं मिले ‘सुबूत’ 
कुछ दिनों तक उपजिलाधिकारी नगेन्द्र शर्मा पर ईओ का कार्यभार था। लेकिन 24 सितंबर 13 को जिलाधिकारी भवनाथ ने एक आदेश जारी कर डूडा के सहायक परियोजना अधिकारी (एपीओ) राजकुमार को ईओ के पद पर अग्रिम आदेशों तक नियुक्ति के आदेश जारी कर दिए।
कारण यह बताया गया कि शहर में डेंगू आदि का प्रकोप है। इसीलिए तत्काल प्रभाव से इनकी इस पद पर अग्रिम आदेशों तक नियुक्ति की जा रही है।
तैनाती शासनादेश के विरुद्घ करार 
डीएम के आदेश पर हुई इस नियुक्ति के बाद 29 अक्तूबर को कमिश्नर मुरादाबाद ने इस तैनाती को शासनादेश के विरुद्घ करार दिया। उन्होंने पत्र में कहा कि एपीओ राजकुमार को नियमानुसार प्रतिनियुक्त पर कार्यरत होने के कारण अतिरिक्त नियमित कार्यभार देना नियत संगत नहीं है।
सपा की साइकिल पर बैठे माफिया अतीक अहमद 
17 अक्तूबर 2009 के शासनादेश का हवाला भी दिया गया और नियुक्ति रद करने को कहा। इतना ही नहीं नगर विकास विभाग के संयुक्त सचिव ने भी इस पर आपत्ति जताई।
लेकिन अभी तक एपीओ अधिशासी अधिकारी की कुर्सी पर जमे बैठे हैं। कैबिनेट मंत्री आजम खां को शायद इस खेल का पता नहीं हो लेकिन उनके विभाग के ही अधिकारी खेल रहे हैं।

सपा चुनाव जितने के लिए कुछ भी कर सकती है !

जानिए, सपा में क्यों आए माफिया अतीक

reason behind ateeq ahmad's entry in sp
बाहुबली अतीक अहमद पर चुनावी दांव लगाने के सपा के फैसले को पूर्वांचल में मुस्लिम कार्ड का रंग गहराने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।
अतीक के बहाने सपा कई सीटों पर सियासी समीकरण साधना चाहती है।
समाजवादी पार्टी लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों को बदलने का सिलसिला जारी रखे हुए है। सुल्तानपुर सीट पर हुआ ताजा बदलाव चौंकाने वाला जरूर है, लेकिन इसके गहरे राजनीतिक अर्थ निकाले जा रहे हैं।
मुस्लिम वोटों पर सपा की नजर
दरअसल, सपा की नजर मुस्लिम वोटों पर टिकी हुई हैं। इसके लिए उसे दागी और बागी दोनों ही तरह के नेता स्वीकार हैं। अतीक अहमद का इलाहाबाद और आसपास की कुछ सीटों पर असर है। वे इलाहाबाद पश्चिम से पांच बार विधायक रहे हैं।
वर्ष 2009 में जब वे अपना दल के टिकट पर प्रतापगढ़ लोकसभा सीट से चुनाव लड़े तो उन्हें 1.08 लाख वोट मिले थे।
भले ही इस चुनाव में अतीक चौथे नंबर पर रहे लेकिन 1.21 लाख वोट के साथ सपा को भी तीसरे पायदान पर पहुंचा दिया था।
इस सीट पर मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बसपा के बीच हुआ था। तब कांग्रेस की रत्ना कुमारी सांसद चुनी गई थीं।
चुनाव से पहले सपा ऐसे मुस्लिम नेताओं पर डोरे डालना चाहती है जो अपने दमखम पर उसका चुनावी गणित बिगाड़ने की हैसियत रखते हैं। अतीक अहमद के बहाने सपा सुल्तानपुर ही नहीं, आसपास की सीटों पर भी मुस्लिम वोटों को साधना चाहती है।
सुल्तानपुर की स्थानीय राजनीति में सपा विधायक अबरार अहमद और पूर्व घोषित प्रत्याशी शकील अहमद के बीच 36 का आंकड़ा है।
मजबूत चेहरे की थी तलाश
इससे लोकसभा चुनाव में होने वाले नुकसान से बचने के लिए सपा को किसी मजबूत चेहरे की तलाश थी जो बाहुबली अतीक अहमद से पूरी हो गई। सपा ने विधानसभा चुनाव में भी शकील अहमद को प्रत्याशी बनाया था लेकिन बाद में उनका टिकट कट गया था।
इस बार खेमेबंदी की जंग में आजम खां के नजदीकी समझे जाने वाले विधायक अबरार उन पर फिर भारी पड़े हैं।
सपा इस नजरिये से भी सुल्तानपुर सीट को अहम मानती है कि विधानसभा चुनाव में यहां की सभी पांचों सीटों पर उसे कामयाबी मिली थी।
अब तक बदले 29 प्रत्याशी लखनऊ। समाजवादी पार्टी अब तक लोकसभा चुनाव के लिए घोषित 29 प्रत्याशियों को बदल चुकी है। सुल्तानपुर में शकील अहमद की जगह अतीक अहमद को उम्मीदवार बनाने के बाद और प्रत्याशियों में भी बदलाव की संभावना है।
सुल्तानपुर के पहले हाल के दिनों में जालौन (सुरक्षित), जौनपुर, कैसरगंज, गाजीपुर, देवरिया, संत कबीर नगर और लालगंज (सुरक्षित), फतेहपुर सीकरी आदि सीटों पर उम्मीदवार बदले जा चुके हैं।