गुरुवार, 5 जून 2014

अब सरकार इसमें क्या करे ?

यूपी से पलायन की तैयारी कर रहा है पीड़ित परिवार
बदायूं, वरिष्ठ संवाददाता
First Published:05-06-14 11:28 PM
Last Updated:05-06-14 11:28 PM
यूपी के बहुचर्चित बदायूं कांड में पीड़ित परिवार अब राज्य से ही पलायन की तैयारी कर रहा है। परिवार की दो बेटियों से गैंगरेप और फिर शव पेड़ पर लटकाए जाने से भयभीत परिजनों को खुद की सुरक्षा का भी डर सता रहा है। पीड़िता के घरवालों ने गुरुवार को आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें शासन-प्रशासन से मदद की कोई उम्मीद नहीं है।

गैंगरेप और हत्याकांड से आतंकित परिजनों का कहना है कि पुलिस सुरक्षा के बावजूद उन्हें लगातार जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं। पीड़ित पक्ष का कहना है कि अब उन्हें गांव क्या यूपी में ही नहीं रहना है। वे कहीं दूर चले जाएंगे। फिलहाल वे दिल्ली जाने की तैयारी में हैं, जहां से वे न्याय की लड़ाई जारी रखेंगे।

मारी गई बच्चियों के परिजनों का कहना है कि देश-दुनिया में सुर्खियां बटोरने वाले इस प्रकरण को लेकर अब नेताओं और अफसरों की आवाजाही बंद हो रही है। गांव से पुलिस फोर्स भी कम हो रही है। ऐसे में हमारी चिंता बढ़ रही है। दबंग उनके साथ कभी भी कुछ कर सकते हैं। वे मजदूरी के लिए बाहर जाते हैं ऐसे में उन्हें मारा जा सकता है।
पीड़ित परिवार ने पुलिस पर मामले को कमजोर करने का आरोप लगाया है। उनका कहना है हत्यारों को उनके अंजाम तक पहुंचाने के लिए वे लड़ाई लड़ते रहेंगे। मगर ऐसा तभी संभव हो सकता है जब वे किसी सुरक्षित स्थान पर रहेंगे।
(हिंदुस्तान से साभार)

बदायूं बलात्कार: 'बहुत कुछ करना चाहती थी बेटी'

 शनिवार, 31 मई, 2014 को 10:03 IST तक के समाचार
उत्तर प्रदेश के जिस गांव में 14 और 16 वर्ष की दो लड़कियों की सामूहिक बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई है, वहां हर तरफ़ बेचारगी और ग़ुस्सा नज़र आता है.
बदायूं ज़िले के कटरा सादतगंज नाम के इस गांव में पहुंचना भी आसान नहीं है. सड़कों की हालत ख़स्ता है तो बिजली के शायद ही कभी दर्शन होते हों. यहां शौचालय की सुविधा कुछ ही घरों में है.
बुधवार की शाम दो चचेरी बहनें शौच के लिए ही पास के खेत में गई थीं. लेकिन उसके बाद वो कभी नहीं लौटीं. अगली सुबह पेड़ से उन दोनों के शव लटके मिले. उनका सामूहिक बलात्कार किया गया था.
परिजनों का कहना है कि जब वो अपनी लड़कियों के गुम होने की रिपोर्ट लिखाने पहुंचे तो पुलिस वाले उन पर हंसे. परिजनों के यह कहने पर पुलिस वालों ने मज़ाक़ उड़ाया कि उन्होंने अपने पड़ोसियों से सुना है कि दोनों बहनों के साथ कुछ पुरूष थे.
परिजनों का कहना है कि इस पूरी घटना के पीछे जाति आधारित भेदभाव एक बड़ी वजह है जबकि पुलिस इससे इनकार करती है.

मां: मेरी बेटी महत्वाकांक्षी थी

इस घटना में मारी गई 14 वर्षीय लड़की की मां ने मुझे उसके स्कूल की कॉपियां दिखाईं, जिन पर हिंदी में सुंदर-सुंदर वाक्य लिखे थे.
उन्होंने बताया कि उनकी बेटी ज़िंदगी में शादी करने के अलावा कुछ और भी करना चाहती थी. वो काम करना चाहती थी, नौकरी करना चाहती थी.
लड़की की मां ने बताया, “वो गांव के लड़कों की तरह कॉलेज तक पढ़ना चाहती थी.”
उन्होंने अपनी बेटी को कह दिया था कि उसे आगे पढ़ने दिया जाएगा क्योंकि वो परिवार में सबसे छोटी बेटी थी.
उन्होंने बताया कि उनकी पीढ़ी की महिलाएं काम नहीं करती हैं लेकिन उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ाने की पूरी कोशिश की है.
वो शांत थीं लेकिन ग़ुस्से से भरी हुईं भी. वहीं इस घटना की दूसरी शिकार 16 वर्षीय लड़की मां बात की करने की स्थिति में नहीं थीं.

शौचालय न होने का ख़तरा

बहुत से ग्रामीणों ने बताया कि शौच के लिए खेतों में जाना असली समस्या है.
महिलाओं के लिए तो ये समस्या और भी बड़ी है. उन्हें या तो सुबह तड़के या फिर शाम को अंधेरा होने पर ही बाहर जाना पड़ता है, क्योंकि दिन के उजाले में खुले में शौच करना शर्मिंदगी वाली बात है.
लड़की की मां ने बताया, “पुरूषों के लिए ये आसान है लेकिन हमारे लिए मुश्किल होता है, ख़ास तौर से हमारी माहवारी के दिनों में.”
उन्होंने बताया कि जिस खेत में शौच के लिए उनका परिवार जाता है, वहां जाने में पंद्रह मिनट का समय लगता है.
वो कहती हैं, “मैं हमेशा अपनी लड़कियों की सुरक्षा को ध्यान में रखती हूं. मैं अपनी और परिवार की अन्य लड़कियों के साथ वहां तक जाती हूं. लेकिन उस दिन मैं जानवरों की देखभाल में अपने पति की मदद कर रही थी, इसलिए मैंने उन्हें साथ जाने दिया. मैंने उनसे जल्दी लौट आने को कहा था.”

'इसे रोका जा सकता था'

एक पड़ोसी ने कहा कि उन्होंने कुछ लोगों को लड़कियों को तंग करते हुए देखा था और इसकी जानकारी उन्होंने लड़कियों के माता पिता को दी जिसके बाद वो पुलिस के पास पहुंचे.
परिजनों का कहना है कि वहां उन्हें दुत्कार मिली.
पड़ोसी रमेश ने मुझे बताया कि उन्हें इस सब पर कोई हैरानी नहीं है. वो कहते हैं, “भले ही पुलिस ने कुछ कांस्टेबलों को निलंबित कर दिया हो, लेकिन उनकी जगह जो आएंगे, वो भी ऐसे ही होंगे. वे भी भेदभाव करेंगे.”
वो कहते हैं, “हमारी जाति के लोग ग़रीब हैं और अनपढ़ हैं और वो सत्ता और प्रभाव वाले पदों तक नहीं पहुंच पाते हैं.”

'पुलिस ने मेरा मज़ाक़ उड़ाया'

लड़की के पिता ग़रीब खेतिहर मज़दूर हैं.
उनका कहना है कि जब वो गांव में बनी पुलिस चौकी में गए तो पड़ोसी ने जिन लोगों को लड़कियों का कथित उत्पीड़न करते हुए देखा था, उनमें से एक वहीं मौजूद था.
"जो पहली बात मुझसे पूछी गई वो थी मेरी जाति, जब मैंने जाति बताई तो वो मुझे गालियां देने लगे."
पीड़ित के पिता
पिता का दावा है कि पुलिस ने उनके छोटी जाति से होने का मज़ाक़ उड़ाया. “जो पहली बात मुझसे पूछी गई वो थी मेरी जाति, जब मैंने जाति बताई तो वो मुझे गालियां देने लगे.”
हालांकि पीड़ित और अभियुक्त दोनों ही अन्य पिछड़े वर्ग से आते हैं लेकिन पीड़ित की जाति को निचली जाति समझा जाता है.
लड़की के पिता का कहना है कि पुलिस अफ़सर और उनके साथ मौजूद वो व्यक्ति हंस रहे थे और उन्होंने कहा कि वो घर चले जाएं और लड़कियां दो घंटे में वापस आ जाएंगी.
वो वापस चले गए और इंतज़ार करने लगे. अगली सुबह पुलिस ने उन्हें बताया कि लड़कियां गांव के एक खेत में मिली हैं.

'हमारी ज़रूरतें अहम नहीं'

इस गांव के लोग ख़ुद को बेबस महसूस कर रहे हैं. चुनावों में नेता उनके वोट मांगने आए थे, लेकिन उनकी ज़रूरतों का ख़्याल किसी को नहीं है.
मारी गई लड़कियों के परिवार की मित्र रत्ना का कहना है कि वो दौरा करने वाले अधिकारियों से लगातार शौचालयों के बारे में पूछती हैं, “लेकिन उनके लिए ये महत्वपूर्ण नहीं है.”
उनका कहना है कि जब किसी के पेट में कोई गड़बड़ हो जाती है तो खेत तक जाना घोर मुसीबत बन जाती है.
ग़रीबी के कारण ये लोग अपने घरों में शौचालय नहीं बनवा सकते हैं.

'किसी तरह का भेदभाव नहीं है'

इस गांव में कोई थाना नहीं है, बस एक पुलिस चौकी है. मुख्य पुलिस स्टेशन गांव से 45 किलोमीटर दूर हैं जहां वरिष्ठ अधिकारी अतुल सक्सेना किसी तरह का भेदभाव होने से इनकार करते हैं.
उनका कहना है जिस पल उन्हें परिवार वालों की तरफ़ से शिकायत मिली, उन्होंने पुलिसकर्मियों को निलंबित किया और तुरंत क़दम उठाया.
उन्होंने कहा, “इससे पता चलता है कि हम कुछ छिपाने की कोशिश नहीं कर रहे हैं.”
उन्होंने कहा कि जाति कुछ भी हो, लेकिन अपराधी क़ानून की नज़र में अपराधी है और पुलिस को मामले की ठीक से छानबीन करन के लिए कुछ समय चाहिए.
(बी बी सी से साभार)
देवरिया में हत्या कर पेड़ से लटका दिए नवदम्पत्ति के शव
देवरिया। कार्यालय संवाददाता
First Published:05-06-14 10:04 PM
Last Updated:06-06-14 01:14 AM
 imageloadingई-मेल Image Loadingप्रिंट  टिप्पणियॉ:(0) अ+ अ-
रामपुर कारखाना थाना क्षेत्र के एक नवदम्पत्ति की बेरहमी से हत्या कर पिपरा गांव के बाहर बागीचे में उनके शव एक पेड़ से लटका दिए गए। गुरुवार की सुबह ग्रामीणों ने शव देखे तो शोर मचाया। पुलिस पता लगा रही है कि दोनों की हत्या क्यों और कैसे हुई। इस बीच दोनों के घर वालों ने एक दूसरे पर हत्या का आरोप लगाया है। एसपी डॉ. एस चनप्पा ने दल-बल के साथ मौके पर पहुंच कर घटना का जायजा लिया। मौत का कारण जानने के लिए शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिए गए। घटना से क्षेत्र में सनसनी फैल गई है।

शवों की शिनाख्त रामपुर कारखाना थाना क्षेत्र के सिधुवा गांव निवासी नागेन्द्र (25) और उसकी पत्नी ममता के रूप में हुई। नागेन्द्र की पहचान उसकी जेब से मिले वोटर आईडी से हुई। दोनों शव सफेद रंग की नायलॉन की नई रस्सी से लटकाए गए थे। उनकी पीठ एक-दूसरे से सटी थी। नागेन्द्र के मुंह में पुराना गमछा ठूंसा गया था तो ममता के मुंह में रुमाल। दोनों के पैर जमीन से करीब छह फीट ऊपर थे। हालात बता रहे हैं कि हत्या कर शव लटका दिए गए।

पुलिस के अनुसार नागेन्द्र, ममता के साथ मंगलवार को अपने घर से निकला था। वह रात नागेन्द्र ने ससुराल में गुजारी। बुधवार की सुबह दोनों मुम्बई का टिकट लेने के लिए देवरिया जाने की बात कह कर वहां से निकले। गुरुवार की सुबह तरकुलवा थाने के पिपरा गांव के बाग में दोनों के शव एक पेड़ से लटकते मिले। दोनों पिपरा गांव कैसे पहुंचे यह भी एक पहेली है।

नागेन्द्र कर्नाटक में श्ॉटरिंग का काम करता था। ममता से उसका सम्पर्क मोबाइल फोन से कुछ समय पहले हुआ। फरेंदहा गांव की ममता (22) से मोबाइल से बातचीत के दौरान दोनों में प्रेम हो गया। अन्तत: उन्होंने शादी का फैसला किया। नागेन्द्र ने घर वालों को अपने फैसले की जानकारी दी। सजातीय होने के कारण दोनों परिवारों को कोई दिक्कत नहीं महसूस हुई और पिछली दो मई को रस्मोरिवाज के साथ शादी हो गई। कुछ दिन बाद नागेन्द्र कर्नाटक चला गया।

यहां ममता की अपनी सास मालती देवी से किसी बात पर खटपट हो गई। मालती ने नागेन्द्र को फोन से सूचना दी कि वह आकर अपनी पत्नी को समझाए कि ठीक से रहे। मां की शिकायत पर वह दो जून को कर्नाटक से आ गया। मंगलवार को ममता के मायके वालों से बात की तो वहां से कहा गया कि ममता पर भूत-प्रेत का साया होगा, वह उसे लेकर फरेंदहा आ जाए। ओझा-सोखा से दिखा कर ठीक करा दिया जाएगा। प्रेत का साया उतरवाने की बात कह कर वह पत्नी को लेकर मंगलवार को अपनी ससुराल फरेंदहा चला गया।

ससुराल में रात में नागेन्द्र के सम्मान में मीट बना। पूरे परिवार ने खुशी-खुशी खाना खाया। बुधवार की सुबह नागेन्द्र व ममता वहां से यह कह कर निकले कि अब दोनों कर्नाटक चले जाएंगे, क्योंकि ममता की अपनी सास से खटपट बन्द होने का नाम नहीं ले रही है। दोनों ने बताया कि वह टिकट लेने देवरिया जा रहे हैं। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार  दोपहर में दोनों गोरयाघाट पहुंचे। वहां नदी में स्नान किए। शाम चार बजे पथरदेवा में रिक्शे से घूमते दिखे। गुरुवार की सुबह पिपरा गांव के बाहर पेड़ की एक ही डाल पर दोनों के शव लटके मिले।


पुलिस की सूचना पर जब नागेन्द्र के परिवारीजन मौके पर पहुंचे तो उन्होंने दोनों शवों को पहचान लिया। नागेन्द्र की मां मालती देवी का आरोप है कि ममता स्वच्छन्द स्वभाव की थी। अक्सर बिना बताए घर से निकल जाती थी। पूछने पर झगड़ा करती थी। उसने नागेन्द्र की ससुराल वालों पर दोनों की हत्या का आरोप लगाया।

 उधर ममता की मां केवला देवी का आरोप है कि उसके दामाद व बेटी को नागेन्द्र के परिवारीजनों ने मार डाला। उसका तर्क है कि शुरू से नागेन्द्र के परिवारीजनों को यह रिश्ता पसन्द नहीं था। लड़के के दबाव में शादी तो कर दी लेकिन वह उन्हें बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे।

कोट-
दोनों परिवारों को थाने बुलाकर बयान लिया जा रहा है। नागेन्द्र के माता-पिता तो आ गए थे मगर ममता के घर में केवल उसकी बूढ़ी मां है। उसके घर पुलिस भेज कर उसका भी बयान लिया गया है। दोनों पक्षों के बयान की सच्चाई परखी जा रही है। बयान व पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिला कर जो भी सच्चाई सामने आएगी उस आधार पर केस दर्ज कर कार्रवाई की जाएगी।
-डॉ. एस चनप्पा, एसपी

घटनाक्रम एक नजर में
-दो मई को नागेन्द्र व ममता की शादी हुई
-तीन मई को ममता नागेन्द्र के घर आ गई
-आठ मई को नागेन्द्र कर्नाटक कमाने चला गया
-31 मई को नागेन्द्र के पास उसकी मां का फोन गया कि तत्काल घर आकर बहू को समझाओ। उसका स्वभाव ठीक नहीं है।
- दो जून को नागेन्द्र घर पहुंचा, उसी दिन ममता की मां से फोन पर बात की
- तीन जून को नागेन्द्र ममता को लेकर ससुराल फरेंदहा पहुंचा
-चार जून को सुबह वहां से देवरिया जाने की बात कह दोनों साथ निकले
-दोपहर में दोनों गोरयाघाट के पास नदी में स्नान करते देखे गए
-शाम चार बजे रिक्शे से पथरदेवा में घूमते दिखे, इसके बाद से उन्हें किसी ने नहीं देखा
-पांच जून को सुबह पांच बजे तरकुलवा थाना क्षेत्र के पिपरा गांव में पेड़ से लटकी दोनों की लाश मिली
-सात बजे पुलिस पहुंची, शव की शिनाख्त होने के बाद साढ़े सात बजे शव पेड़ से उतारे गए, सुबह आठ बजे शवों का पंचनामा कर शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिए गए
-साढ़े नौ बजे एसपी डॉ. एस चनप्पा और ढाई बजे डीआईजी संजीव कुमार ने घटनास्थल का निरीक्षण किया

(अब सरकार इसमें क्या करे ?)


जानिए क्यों रही यूपी पुलिस कमजोर
आनंद सिन्हा / राज्य मुख्यालय
First Published:05-06-14 09:48 PM
Last Updated:05-06-14 09:48 PM
 imageloadingई-मेल Image Loadingप्रिंट  टिप्पणियॉ:(0) अ+ अ-
बदायूं दुराचार कांड पर भले ही हायतौबा मची है लेकिन हकीकत यह भी है कि हालात यूं ही अचानक खराब नहीं हुए। गए दो साल में पुलिस की न हनक बन सकी और न धमक कायम हुई। वजह डीजीपी मुख्यालय का बतौर नियंत्रक लगातार फेल होना रहा।

मौजूदा और पिछली बसपा सरकार में अपराध स्थिति की तुलना करें तो अपराधिक घटनाओं की गणित के हिसाब से हालात बहुत ज्यादा फर्क नहीं हैं। आंकड़े थोड़ा-बहुत कम ज्यादा हैं, लेकिन इतना जरूर है कि पुलिस की हनक चाहे छुटभैये अपराधी हो या माफिया या आम नागरिक सबके दिलों-दिमाग में कायम रही। कई पूर्व अधिकारी कहते हैं, इसकी वजह डीजीपी मुख्यालय का बतौर नियंत्रक कमजोर होना है।

शासन या यूं कहें प्रमुख सचिव गृह की ओर से डीएम व एसपी को तमाम निर्देश दिए जाते हैं, लेकिन उनको अमली जामा पहनाने का काम डीजीपी मुख्यालय करता है। मौजूदा सरकार में चाहे डीजीपी एसी शर्मा रहे हों, देवराज नागर या रिज़वान अहमद। किसी भी अधिकारी की अपराध नियंत्रण या यूं कहें अपराधियों के खिलाफ काम करने की छवि नहीं थी।

कमोबेश सभी जिलों में तो तैनात रहे लेकिन बड़े अपराधियों को नकेल कसने की कार्यकुशलता या फिर आपरेशन छेड़ने की उनकी क्षमता पूरे सेवाकाल में सामने नहीं आई। अब भी हालात कुछ बदले नहीं हैं। देवराज नागर को छोड़कर अन्य दोनों के कार्यकाल में भ्रष्टाचार की चर्चाएं रहीं सो अलग।
इसके इतर बसपा सरकार में डीजीपी रहे विक्रम सिंह, कर्मवीर सिंह और ब्रजलाल की छवि हमेशा अपराधियों, माफिया गिरोहों से लोहा लेने वाले अधिकारियों की रही। पूर्व आईजी श्रीधर पाठक कहते हैं-‘शायद यही वजह रही कि डीजीपी मुख्यालय से दिए जाने वाले निर्देशों की पुलिस अधीक्षकों पर लगाम कसने के साथ ही अपराधी गिरोहों में भी दहशत रही। इसका फायदा पुलिस की हनक कायम करने में मिलता रहा। अंजाम बेहतर कानून-व्यवस्था की छवि के रूप में आया, भले ही अपराधि आंकड़ों में ज्यादा अंतर न रहा हो।

इनसेट-------------------------------------
वर्ष-2011 बसपा सरकार में हुए दुराचार----2043----
महिलाओं-बच्चियों के अपहरण-----7535
----छेड़छाड़-------3455
वर्ष 2012 सपा सरकार में हुए दुराचार------1963
----महिलाओं-बच्चियों के अपरहण -----7910
----छेड़छाड़-------3247
(आंकड़े नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो-नई दिल्ली )

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें