शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

सूबे में कौन सुरक्षित

यह हाल  है-

तो फिर सूबे में कौन सुरक्षित

Updated on: Sat, 14 Jul 2012 02:26 AM (IST)


- सदन से लेकर गृह विभाग तक माननीयों की गुहार
- विशेष श्रेणी की सुरक्षा स्टेटस सिंबल
आनन्द राय
लखनऊ : गोरखपुर से तीसरी बार चुने गये भाजपा विधायक डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल ने कई साल पहले अपने सुरक्षाकर्मी को यह कहकर वापस कर दिया कि जनता के लिए काम करने वाले व्यक्ति को सुरक्षा की कोई जरूरत नहीं। आज भी डॉ. अग्रवाल सुरक्षाकर्मी के बिना चलते हैं, लेकिन सूबे के सभी माननीय ऐसे नहीं हैं। कई तो अपनी सुरक्षा को लेकर कभी विधानसभा में फरियाद करते नजर आए और कभी विशेष श्रेणी की सुरक्षा के लिए गृह विभाग में। सवाल उठना लाजिमी है कि जब माननीय ही असुरक्षित हैं तो फिर सूबे में कौन सुरक्षित है।
वाई श्रेणी की सुरक्षा के लिए डेढ़ सौ विधायकों ने अर्जी लगाई है। शासन पशोपेश में है कि किसे -किसे विशेष श्रेणी की सुरक्षा प्रदान करे। पिछले दिनों सदन में बलिया जिले के भाजपा विधायक उपेन्द्र तिवारी ने प्रदेश सरकार के एक मंत्री से अपनी जान का खतरा बताते हुए विधानसभा अध्यक्ष से सुरक्षा की मांग की। पूर्वाचल के बाहुबली बृजेश सिंह के भतीजे और दबंग निर्दल विधायक सुशील सिंह भी खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। बसपा एमएलसी मुकुल उपाध्याय ने तो अदालत में पैरवी कर अपने लिए वाई श्रेणी की सुरक्षा का आदेश हासिल किया, जबकि कांग्रेस विधान मंडल दल के नेता प्रदीप माथुर और विधान परिषद में नेता नसीब पठान ने भी पहल कर वाई श्रेणी की सुरक्षा हासिल कर ली। विपक्ष की बात छोड़िए, सत्ता पक्ष के ही अधिकांश विधायक खुद को असुरक्षित समझ रहे हैं। चाहे इलाहाबाद के महेश नारायण सिंह हों या सीतापुर जिले के सपा विधायक अनूप गुप्ता। सपा के बहुतायत विधायकों की वाई और एक्स श्रेणी की सुरक्षा की अर्जी गृह विभाग में पड़ी है। बहुत से लोग वाई श्रेणी की सुरक्षा में चल रहे हैं। कुछ ऐसे भी माननीय हैं, जिन्हें दो -दो गनर दिए गये हैं। पूछने पर प्रमुख सचिव गृह आरएम श्रीवास्तव ने सुरक्षा मांगने वाले विधायकों का नाम बताने से इंकार कर दिया। उन्होंने यह जरूर कहा कि माननीयों की सुरक्षा को लेकर जिला और राज्य स्तर पर नियम पूर्वक बैठक होती और गंभीरता पूर्वक विचार किया जाता है।
सवाल यह भी है कि क्या वाकई इन माननीयों को जान का खतरा सता रहा है, या गनर और शैडो उनका स्टेटस सिंबल हैं। पिछली बसपा सरकार में कई प्रभावशाली नेता थे, जिनको जेड श्रेणी की सुरक्षा हासिल थी। गौर करें तो कई बार राजनीति प्रतिस्पर्धा में भी माननीय जान के खतरे का शिगूफा छोड़ते हैं। अब सांसद धनंजय सिंह का ही उदाहरण लें। बसपा में थे तो मायावती उनकी आदर्श थीं, लेकिन जब पार्टी से बाहर किये गये तो उन्होंने मायावती से अपनी जान का खतरा बता दिया। खुद मायावती ने भी सरकार गिरते ही समाजवादी पार्टी से अपनी जान के खतरे का मुद्दा गरमा दिया। समाजशास्त्री डॉ. सुधीर कुमार कहते हैं कि कुछ माननीय भले परिस्थितिवश असुरक्षित महसूस कर रहे हों, लेकिन बहुत से अपराधियों ने भी सियासी चोला पहन लिया है। ऐसे दागी लोगों को पल-पल खतरा बना रहता है। 

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